रविवार, 11 सितंबर 2011

ताज-एक नया अंदाज़

शाहजहां और मुमताज़ के प्रणय का गान , ताज

एक और प्रणय कहानी का आगाज़ |


यमुना के किनारे ताज,

लिए खडा है किसी की याद

सदियों से दे रहा पैगाम

प्यार दौलत है जिन्दगी की |


यमुना को नाज़ है ताज पर

या ताज को अपनी यमुना पर ?

सांवली सलोनी यमुना ,

दूध धुला, मोती की आभा लिए ताज ,

चाँदनी रात में दोनों बतियाते तो होंगे,

अपनी प्रेम कहानी पर इठलाते तो होंगे |


ताज महान है

क्योंकि ,यमुना का दर्द कभी

होठो तक नहीं आया

उसके किनारे , उसका जल

बस पखारते ही रहे ,ताज के चरण

एक पतिव्रता स्त्री की तरह ,समर्पित से|


गुम्बज और कंगूरे हो जाते हें महान

नींव की मजबूती से ,

नींव के पत्थर के बलिदान से

लेकिन ,कहाँ मिलते हैं कद्रदान ?

जो समझ सकें दर्द, उस नींव के पत्थर का ,

यमुना के उस कूल का

जिसने ताज को महान बना रखा है |


प्यार भी दौ़लत तभी बनता है

जब दर्द दिल में रहे और होंठ सिले ,

प्यार मांगता है बलिदान ,प्यार मांगता है समर्पण

यमुना के तट की तरह

तभी ताज बनता है महान |


मोहिनी चोरडिया


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें