रविवार, 11 सितंबर 2011

वर्तमान


कहते हैं
बस दो दिन और 
लेकिन दो दिन  और मिल जाते 
तब भी उतना ही कर पाते 
जितना अब तक किया है 
ययाति की तरह 
हम सब मौत से मोहलत 
मांगते रहते हैं 
और युग बीत जाने पर भी 
उस मोहलत के रंग नहीं खिला पाते 
रहते हैं वहीं ,चले थे जहां से 
कोल्हू के बैल की तरह 
ढोते हैं जिन्दगी 
बिना आगे बढे 
तब तक मौत वापस आ जाती है 
वादा निभाने को कहती है ,और 
हम लाचार से चल पड़ते हैं ,
उसके साथ ,खाली हाथ 
रावण की तरह चाहते तो हैं ,लेकिन 
न लगा पाते सीढियां स्वर्ग तक 
वक्त जाया करते हैं ,
झूठे अहंकार में या कि प्रमाद में ,
बिना ये समझे कि 
मौत का भी एक दिन है 
दो दिन की जिन्दगी में  
बचा हुआ एक ही दिन है 
जो चाहें कर लें |


मोहिनी चोरडिया 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें