कहते हैं
बस दो दिन और
बस दो दिन और
लेकिन दो दिन और मिल जाते
तब भी उतना ही कर पाते
जितना अब तक किया है
ययाति की तरह
हम सब मौत से मोहलत
मांगते रहते हैं
और युग बीत जाने पर भी
उस मोहलत के रंग नहीं खिला पाते
रहते हैं वहीं ,चले थे जहां से
कोल्हू के बैल की तरह
ढोते हैं जिन्दगी
बिना आगे बढे
तब तक मौत वापस आ जाती है
वादा निभाने को कहती है ,और
हम लाचार से चल पड़ते हैं ,
उसके साथ ,खाली हाथ
रावण की तरह चाहते तो हैं ,लेकिन
न लगा पाते सीढियां स्वर्ग तक
वक्त जाया करते हैं ,
झूठे अहंकार में या कि प्रमाद में ,
बिना ये समझे कि
मौत का भी एक दिन है
दो दिन की जिन्दगी में
बचा हुआ एक ही दिन है
जो चाहें कर लें |
मोहिनी चोरडिया
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