बुधवार, 25 जनवरी 2012

गौरवान्जली-शहीद की पत्नी के नाम एक पत्र



अपने मन को मुर्झाने मत देना 
अपने बच्चों की दुनियाँ को
कुम्हलाने मत देना 
बच्चे यदि पापा से मिलने को मचलें ,तो उन्हें 
समन्दर की लहरें दिखा लाना ,
बगीचे में जाकर फूलों की खुशबू सुंघा लाना |
क्या हुआ जो एक जिन्दगी ने 
अपने अनगिनत बसंत देश के नाम लिख दिए ?                       
लोग पतंगों की मानिंद जी कर
इस दुनियाँ से विदा हो जाते हैं 
तुम फक्र करना की तुम्हारे पति ने
अपना चोला बसंती रंग लिया,   
देश के लिए अपनी जाँ निसार कर गया .|
इतिहास अपने वतन के इन शहीदों की मिसाल को 
अपने पन्नों पर ,
सुनहरे रंग की छटा से
सराबोर रखेगा, शहादत के नाम पर |
मैं समझ सकती हूँ
जिंदगी  भुलावे में नहीं जी जा सकती 
मैं समझ सकती  हूँ  
जिंदगी छलावे में नहीं जी जा सकती,
लेकिन,
हिम्मत से काम लेना ,
तुम उस देश की मिटटी में जन्मी हो ,जहां 
जहां ,हर पल -हर क्षण ,एक माता
शहीद को जन्म देती है |
ये राजस्थान ,ये पंजाब ,ये महाराष्ट्र ,
ये सारे  हिंदुस्तान की धरती हे ,
जो शहीदों की शहादत की कहानी कहती है | 
स्वयं आँसू पी  लेना 
नाज  करना अपने शहीद की पत्नी होने पर 
गरल पीने वाले ही शिवशंकर बनाते हैं |
मत समझना इन्हें शब्दों की कोरी सहानुभूति 
ये है  एक  नहीं, अनेक संवेदनशील 
भारतवासियों की, गौरवांजली |
शहीद की शहादत की सुगंध , 
इस देश की
ये बासंती हवाएं पहुंचाएंगी ,सरहद के पार 
जहाँ कोई,
उस वतन की तुम्हारी सखी सहेली ,
कोई माँ ,तुम्हारे ही जैसी पीड़ा झेल रही होगी ,
शायद,
शायद वो अपने कोख के बच्चे को कहे ,
अमन चैन का रास्ता चुनना 
किसी माँ की कोख सूनी मत करना ,
किसी पत्नी का सुहाग मत उजाड़ना 
हो सके तो ,
किसी बेटे को 
माँ की बूढ़ी पथरायी आँखों से मिला देना 
किसी पत्नी की माँग को सुरमई रंग दे देना 
पापा को उनकी नन्ही कलियों और
कोंपलों से मिला देना 
भाई को बहिन की रंगीन राखियों से |
ये भारत देश है ,
यहाँ कोई सीता
अग्नि-परीक्षा से नहीं डरती ,और 
कोई शहीद की विधवा
राष्ट्र धर्म" निभाने से
पीछे नहीं हटती |


मोहिनी चोरड़िया 

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

पता नहीं ?



जो मुझे स्वयं को पता नहीं था ,
कि ये मेरे अंदर है ,
कि मेरे अंदर ऐसी शक्ति है
इतनी ऊर्जा है 

कि मैं  ऊँची उठ सकती हूँ 
कि मैं अच्छा, सच्चा, सार्थक जीवन जी
सकती हूँ

उसको तुमने मुझे दिखाया |
मैं आज जो भी हूँ, सिर्फ
तुम्हारे कारण हूँ
क्या मैं तुम्हें ये
कभी बता सकूंगी ?
मैं तुम्हारा आभार भी नहीं
कर सकती
शब्द छोटे पड़ रहे हैं
कभी मिले तो बता सकूं शायद ! 
पता नहीं ?


मोहिनी चोरडिया

रविवार, 15 जनवरी 2012

सूरज! पत्ते चमकें रे

रवि किरणों ने
आकाश रंग दिया
पत्ते चमकें रे
देख भोर की
सूर्य लालिमा
धरती गमके रे |

आदित्य ह्वदय जब
मुँह दिखाएँ
नीड़ जागें रे |
खग वृन्द भी
भरें उड़ानें
चिड़िया चहंके रे

कलियाँ चटकें
किसलय विहँसे
भौंरे गुंजन मारें रे
माली की मुस्कान बढे,
ज्यूँ
बगिया महके रे |

सूर्य हुआ उत्तरायण देखो
नयी-नयी ले
किरणें  रे
मौज मनाते खेत
देते
भर-भर फसलें रे |  

सागर तट  पर
बढ़े भीड़
सब मल-मल नहायें रे
सूर्य स्नान का मजा उठायें
पतंग उडायें  रे|

सर्दी की ठिठुरन
धीमी ,अब
झूमें , नाचें, गाएं रे
तिल गुड के लड्डू
हम खायें
मौज मनायें रे  |

      
मोहिनी चोरड़िया          

बुधवार, 4 जनवरी 2012

भोर


यही समय होता है ,
सुखद एहसास का
जब मैं मन के घोड़ों पर चढ़ी
ऊँचे और ऊँचे पहुँच जाती हूँ
जहां मिलन होता है
प्रकृति की अनमोल धरोहरों से
नीलगगन से बातें होती हैं
तब तक ही लाल रंग की छटा लिये
भगवान भास्कर प्रकट हो जाते हैं
जगत को नहला देते हैं
अपने प्रकाश से
मुझे स्पर्श करते हैं ,
अपनी बाहों में लेते हैं
अपने किर्न्नों का विस्तार कर
कभी बादल मुझे अपने आगोश में
भर लेते हैं
मन का हर कोना जागृत हो जाता है
स्फूर्ति से भर जाता है
तृप्त हो जाता है
पूरे दिन की ऊर्जा मिल जाती है
इसी समय में
नीचे उतरते-उतरते
कर्णप्रिय कलरव पक्षियों का
सुकून देता है कानों को
दिनचर्या के लिये अपने-अपने नीड़से निकलकर
खुले आसमान में उनकी  पंक्तियों भरी उड़ान
प्रफुलित कर जाती है मन को
और  नीचे आने पर
हरित वस्त्रों पर रंगीन फूलों का लिबास पहने
प्रसन्न वदन  धरती  खिली खिली सी
जैसे मिलन हो गया हो प्रियतम से
प्रकृति की ये मनमोहक छटाएं
भर देती हैं मन को
सुकून से
पुलक से
आनंद से |

मोहिनी चोरडिया