रविवार, 9 अक्तूबर 2011

वो बचपन


गली मोहल्ले के बच्चों की टोली के साथ
कंचे सतोलिये खेलता वो बचपन
भुलाए नहीं भूलता |

पड़ौस की सोलह घरों की ग्वाड़ी में
दादा बरगद के पेड़ से लटकती हवाई जड़ों से झूलना
भुलाए नहीं भूलता |
रात को माँ बहिनों के साथ चौपड खेलना
हँसते- हंसते पेट में बल पड़ना
भुलाए नहीं भूलता |
बर्फ के गोले बेचने वाले दादा का आवाज़ लगाना
लाल –गुलाबी शरबत डली चुस्कियां खाना
भुलाए नहीं भूलता |

मामा के घर के पास, बूढ़े कुम्हार काका के
चॉक पर चलते सुघड हाथों से बनी सुराही और घड़ा
भुलाए नहीं भूलता |
अमराई में जाकर कच्ची अमिया खाना
पत्थर मारकर इमली गिराना और मुहं में पानी आ जाना
भुलाए नहीं भूलता |

गर्मी की लू से बचाने के लिए
मामी का प्याज की गुरियाँ खिलाना
भुलाए नहीं भूलता |
कुओं पर बैलों की जोड़ियों से बंधी
रहंट की रस्सी पर बैठना, चढना, उतरना
पानी का कुँए से बाहर आना
भुलाए नहीं भूलता |

घर के बड़ों की शीतल छावं में
गर्मी की तपिश को भुलाता बचपन
बारिश के पानी में
कागज़ की कश्ती बहाता बचपन
न पहाड़ की ख्व्वाहिश
न वातानुकूलित कमरों की
ख्व्वाहिश थी तो बस मस्ती की
एक दूसरे के साथ रहने की
एक दूसरे के मन की बात सुनने की
एक दूसरे के मन की बात कहने की
जो आज कम मिलती दिखती है |

मोहिनी चोरडिया