गुरुवार, 22 सितंबर 2011
वो पल
रविवार, 18 सितंबर 2011
रूप तुम्हारा
शुक्रवार, 16 सितंबर 2011
आत्मजागरण
पालक हूँ, पोषक हूँ
अन्नपूणा,
रम्भा ,कमला ,मोहिनी स्वरूपा
रिद्धि- सिद्धि भी में ही ,
शक्ति स्वरूपा ,दुर्गा काली ,महाकाली ,
महिषासुरमर्दिनी भी में ही
में पुष्ट कर सकती हूँ जीवन
तो नष्ट भी कर सकती हूँ ,
धरती और उसकी सहनशीलता भी में
आकाश और उसका नाद भी में
आज तक कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सका
पुरुष के अहंकार ने ,उसके दंभ ,उसकी ताकत ने ,
मेरी गरिमा को छलनी किया हमेशा ही
मजबूर किया अग्नि -परीक्षा देने को ,
उस खंडित गरिमा के घावों की मरहम -पट्टी न कर
हरा रखा मैंनें उनको ,
आज नासूर बन चुके हैं वो घाव
रिस रहे हैं
आज में तिरस्कार करती हूँ ,
नारीत्व का ,स्त्रीत्व का, मातृत्व का ,
अपनी अलग पहचान बनाए रखने के लिए
टकराती हूँ ,पुरषों से ही नहीं ,पति से भी
( पति भी तो पुरुष ही है आखिर )
स्वयं बनी रहती हूँ पुरुषवत, पाषाणवत ,कठोर
खो दी है मैंनें
अपने अन्दर की कोमलता ,
अपने अन्दर की मिठास
जो लक्षण होता है स्त्रीत्व का
वह वात्सल्य ,
जो लक्षण होता है मातृत्व का
नारी मुक्ति की हिमायती बनी में
आज नहीं पालती बच्चों को
आया की छाया में पलकर
मुझे पता नहीं ,क्योंकि
में व्यस्त हूँ अपनी जीरो फिगर को बनाए रखने में,
में व्यस्त हूँ उंची उड़ान भरने में
लेकिन आत्म-प्रवंचना आत्मग्लानी जागी एक दिन
जब मेरे ही अंश ने मुझे
दर्पण दिखाया
उसके पशुवत व्यवहार ने मुझे
स्त्रीत्व के धरातल पर लौटाया ,
एक क्षण में आत्म-दर्शन का मार्ग खुला
मेरी प्रज्ञा ने मुझे धिक्कारा
फटी आँखों से मैनें अपने को निहारा
पूछा अपने आप से ,तुम्हारा ही फल है ना ये ?
मिठास देतीं तो मिठास पातीं
संस्कार देतीं तो संस्कार पाता
न बनता अपराधी वह
अगर मिलती गहनता संस्कारों की
सृजन के लिए जरूरी हे स्त्रीत्व ,पौरुषत्व
मन और आत्मा के मिलन की
आज जाग गई हूँ
प्रण करती हूँ ,अब ना सोउंगी कभी
आत्म-जागरण के इस पल को न खोउंगी कभी
पालूंगी, पोसूगी अपने अंश को
दूंगी उसे घुट्टी लोरियों में
अच्छा पुरुष, अच्छी स्त्री बनने की
जैसे दी थी जीजाबाई ने शिवाजी को
जैसे दी थी माँ मदालसा ने अपने बच्चों को
करेंगे मानवता का सम्मान
तभी बढ़ेगा मेरी कोख का मान |
मोहिनी चोरडिया
फिर प्रारम्भ होगा सृष्टिचक्र
पुरुष !
विवाह रचाओगे ?
ताज_ एक अलग अन्दाज़
बुधवार, 14 सितंबर 2011
फिर प्रारम्भ होगा सृष्टिचक्र
रविवार, 11 सितंबर 2011
ताज-एक नया अंदाज़
शाहजहां और मुमताज़ के प्रणय का गान , ताज
एक और प्रणय कहानी का आगाज़ |
यमुना के किनारे ताज,
लिए खडा है किसी की याद
सदियों से दे रहा पैगाम
प्यार दौलत है जिन्दगी की |
यमुना को नाज़ है ताज पर
या ताज को अपनी यमुना पर ?
सांवली सलोनी यमुना ,
दूध धुला, मोती की आभा लिए ताज ,
चाँदनी रात में दोनों बतियाते तो होंगे,
अपनी प्रेम कहानी पर इठलाते तो होंगे |
ताज महान है
क्योंकि ,यमुना का दर्द कभी
होठो तक नहीं आया
उसके किनारे , उसका जल
बस पखारते ही रहे ,ताज के चरण
एक पतिव्रता स्त्री की तरह ,समर्पित से|
गुम्बज और कंगूरे हो जाते हें महान
नींव की मजबूती से ,
नींव के पत्थर के बलिदान से
लेकिन ,कहाँ मिलते हैं कद्रदान ?
जो समझ सकें दर्द, उस नींव के पत्थर का ,
यमुना के उस कूल का
जिसने ताज को महान बना रखा है |
प्यार भी दौ़लत तभी बनता है
जब दर्द दिल में रहे और होंठ सिले ,
प्यार मांगता है बलिदान ,प्यार मांगता है समर्पण
यमुना के तट की तरह
तभी ताज बनता है महान |
मोहिनी चोरडिया
जीवन की क्षणभंगुरता
सावन के झूले
चलो सखी झूला झूलें |
झूला झुलाने सखी पी मेरे आये
तन मन हुआ लुभावना
चलो सखी झूला झूलें |
सावन की मन भावन की
मौसम बड़ा सुहावना
चलो सखी झूला झूलें |
कोयल कूक लगावना
चलो सखी झूला झूलें |
धानी चूनर ओढ ली सखी
साजन के रंग में रंगी
प्रियतम प्रीत लुटावना
मन्द- मन्द मुस्कावना
चलो सखी झूला झूलें |
सावन के झूले
चलो सखी झूला झूलें |
झूला झुलाने सखी पी मेरे आये
तन मन हुआ लुभावना
चलो सखी झूला झूलें |
सावन की मन भावन की
मौसम बड़ा सुहावना
चलो सखी झूला झूलें |
कोयल कूक लगावना
चलो सखी झूला झूलें |
धानी चूनर ओढ ली सखी
साजन के रंग में रंगी
प्रियतम प्रीत लुटावना
मन्द- मन्द मुस्कावना
चलो सखी झूला झूलें |
मुक्तक
मुक्तक
मुक्तक
फ़र्ज बताया गया
क़र्ज बताया गया
शब्दों का अर्थ समझाया गया |
चीजें जैसी दिखती हैं वैसी होती नहीं
जो आंसुओं में बह रही थी
और भीड़ में भी
आदमी तन्हा हो सकता है