रविवार, 11 सितंबर 2011

प्यार की बाँसुरी



तुम्हारे प्यार की फुहार से
इस कदर भीगा तन-मन, कि,
जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन
झुलसा न सकी इसे
आहत न कर सकी
दोपहर की चिलचिलाती धूप,
तुम्हारे प्यार को चुनर बना
ओढ़ जो लिया था मैंने
तुम्हारे नशीले गीतों को
कान्हा की बाँसुरी की तान समझ
पी गये थे मेरे कर्ण पुट
प्यार की उस झील के किनारे को
यमुना का कूल समझ
गोपी जो बन गई थी मैं |


मोहिनी चोरडिया

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