शुक्रवार, 21 मई 2010

प्रकृति


मैं लिखना चाहती हूँ गीत प्रकृति
तेरी प्रशंसा में,
लेकिन तू तो स्वयं एक गीत है
जीता जागता संगीत है
लयबद्ध , तालबद्ध
छंद है ,गान है
एक अनवरत अनचूक सिलसिला है जीवन का |
तेरे मौसम से
मेरे जीवन का अटूट रिश्ता है
तेरा मेरा ये रिश्ता पुराना है, जन्मों का
लगता है मैं तेरी ही बाँहों में खेली हूँ
तेरे ही साथ जागी तेरे ही साथ सोयी हूँ
तेरी ताल पर ही मेरे पैर थिरके हैं
तेरे सोंदर्य में ही मेरी आँखें खोई हैं
तेरे ही नज़ारे मेरी नजर में बसे हैं
तेरी ख़ुशी में मैं खुश हूँ
तेरी उदासी मेरी है
तेरी मुस्कराहट मेरी खिलखिलाहट
तेरी टूटन मेरी छटपटाहट है .
तू ही मेरी आकृति ,तू ही मेरा लिबास है
तुझे पहनूं , ओढू या बिछाउ,
तुझसे बातें करूँ ,
तुझे प्यार करूँ या
तुझे बनाने वाले से ,
सुन्दर, अतिसुन्दर अभिव्यक्ति हे तू प्रकृति
मेरे सृजनहार की |

मोहिनी चोरडिया