gulmohar
रविवार, 11 सितंबर 2011
मुक्तक
लो! मैनें मिटा ली अपनी हस्ती आज,
शायद, तुम्हारे ख्वाबो को मिल सके परवाज|
तुम्हारे कदमों के निशां ,दूर तक चलें,
लो मैनें बदल ली अपनी राह |
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