बुधवार, 4 जनवरी 2012

भोर


यही समय होता है ,
सुखद एहसास का
जब मैं मन के घोड़ों पर चढ़ी
ऊँचे और ऊँचे पहुँच जाती हूँ
जहां मिलन होता है
प्रकृति की अनमोल धरोहरों से
नीलगगन से बातें होती हैं
तब तक ही लाल रंग की छटा लिये
भगवान भास्कर प्रकट हो जाते हैं
जगत को नहला देते हैं
अपने प्रकाश से
मुझे स्पर्श करते हैं ,
अपनी बाहों में लेते हैं
अपने किर्न्नों का विस्तार कर
कभी बादल मुझे अपने आगोश में
भर लेते हैं
मन का हर कोना जागृत हो जाता है
स्फूर्ति से भर जाता है
तृप्त हो जाता है
पूरे दिन की ऊर्जा मिल जाती है
इसी समय में
नीचे उतरते-उतरते
कर्णप्रिय कलरव पक्षियों का
सुकून देता है कानों को
दिनचर्या के लिये अपने-अपने नीड़से निकलकर
खुले आसमान में उनकी  पंक्तियों भरी उड़ान
प्रफुलित कर जाती है मन को
और  नीचे आने पर
हरित वस्त्रों पर रंगीन फूलों का लिबास पहने
प्रसन्न वदन  धरती  खिली खिली सी
जैसे मिलन हो गया हो प्रियतम से
प्रकृति की ये मनमोहक छटाएं
भर देती हैं मन को
सुकून से
पुलक से
आनंद से |

मोहिनी चोरडिया

           

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