मंगलवार, 29 नवंबर 2011

फिर प्रारम्भ होगा सृष्टि -चक्र


पुरुष !
विवाह रचाओगे ?
पति कहलाना चाहोगे?
पत्नी को प्रताड़ित करना छोड़ ,
अच्छे जीवन साथी बन पाओगे?

मेरी ममता तो जन्मों की भूखी है ,
बच्चों के लिए बिलखती है,
सृष्टि-चक्र, मेरे ही दम पर है ,यह कहते हो ,
फिर भी दुत्कारी जाती है ?

इतिहास के हर यक्ष-प्रश्न का जवाब
में देती आई हूँ
(यक्ष को भी जन्म मैनें ही दिया था )
लेकिन ,लेकिन इस बार प्रश्न मेरे होंगे |

पुरषों ,महापुरुषों को जन्म देने वाली औरत ,
अन्य पुरुषों से ही नहीं ,अपने ही पति से
बलात्कार और तन्हाइयों का शिकार
क्यों होती है ?

ये निर्माणीतान रुक जायेगी
विध्वंस का राग छिडेगा ,यदि
किसी मासूम का गला,
इस दुनियाँ में आने से पहले ही
घुट जाएगा ,या बिलखती मासूम बाहों का
सहारा छिन जाएगा |

मेरे विशेषण तो हर युग में बदले हैं ,
पुरुष के अहंकार ने कभी कुलटा तो कभी दुष्टा कहा,
मातृत्व सुख की चाह जगाकर ,
भीड़ में कहीं खो गया |

आज फिर तुमने ,उसी पुरानी ममता
और मातृत्व सुख का लालच देकर
मुझे रिझाना चाहा है ,लेकिन पुरुष !
मेरी जड़ता को ,मेरी ऋजुता को
अब मैनें पीछे की सीट पर बैठा दिया है, और
मैं जाग्रत होकर अपने जीवन की गाड़ी
स्वयं चलाने लगी हूँ |

हो सकता है मेरा ये बर्ताव ,तुम्हें
मेरी वक्रता लगे ,लेकिन पुरुष !
मेरा वादा रहेगा
जिस दिन तुम्हारा अहंकार पिघल जाए
मुझे याद करना
प्रथम पुरुष मनु और प्रथम स्त्री इडा की तरह
हम अच्छे साथी बनकर
नयी सृष्टि की शुरुआत करेंगे |

मोहिनी चोरडिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें