बुधवार, 16 नवंबर 2011

सर्जनहार

किसी को फूल किसी को कांटे
तुमने ही शायद बांटे
उलझाते हो तो सुलझाते भी तुम्ही हो
गिराते हो तो उठाते भी तुम्ही हो
तुम्हारी ताकत को तोलना
मेरी सामर्थ्य में नहीं
हाँ ,मेरी ताकत को तोलने की
तुम पूरी कोशिश करते हो
मेरी हार में तुम हँसते हो
मेरी जीत में तुम हंसते हो
क्योंकि दोनों तुम्हारे हाथ में ही हैं
मैं कमज़ोर इंसान
हार में रोता
जीत में हंसता हूँ
बिना ये समझे कि
मेरी हार होती है तुम्हारे ही आदेश से,
जीत की खुशी क्या होती है
शायद ये समझाने के लिए |
मोहिनी चोरडिया

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