गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

मौसम का बारहमासा


जेठ की तपती दुपहरिया
निगल गई चिंताएं अतीत की
आलस में डूबा तन
सूना-सूना लगे मन
कपडे-लत्ते न सुहाएँ
सब मिल बतियाँ बनाएँ

और तभी ,

कुदरत की खुशबू लिए
बारिश का मौसम, आया
धरती को नया जन्म मिला
मिट्टी की सौंधी खुशबु से मन हिला
आई बरखा रानी
स्वप्न सुन्दरी बनकर |

दादुर,मोर,पपीहा
करें सब शोर
भीगी-भीगी हवाएं ,
नगमें सुनाएं
किसी की यादों का मौसम
दिल को धड्काए |

खिज़ाँ के मौसम ने दिखाई
पेड़ों की बेबसी
वसनरहित हो जाने की ,अपनों की जुदाई की
सिखा गया पतझड़ का मौसम 
सृजन के साथ विसर्जन है, दःख के साथ सुख है
जीवन मौसम है |

आगे बढ़ने पर ,
धूप और छाया की
ऑंख मिचौनी  मिली
सुनहरी धूप ने धरती की गोद भरी
बहारोँ ने आकर वसन पहनाकर, 
पेड़ों को नया रंग दिया
समझाया , मौसम कितना भी खराब हो
बहारें फिर से लौटती हैं|

ऋतुओं की रानी आई
दिल के दरवाजे पर
खुशियों के साथ-साथ
फूलों के गुलदस्ते लाई
ख़्वाबों  का , उमंगों का ,
मुस्कराने का मौसम लाई |

 दिल ने कहा 
मौसम बाहर कैसे भी हों
अंदर जब फेलती है हसींन यादें ,
तभी मन के
इन्द्रधनुष खिलते हैं
सतरंगी सपने अपने होते हैं

मोहिनी चोरडिया



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