तुम आई थीं
मेरे अंगना
घुंघरू बजातीं
शीतल चाँदनीबनकर
चोदहवीं के चाँद की
गूँथ दिया था
सारे परिवार को गेंदे के फूल सा
भर दिया था उजाला
सभी के मन में|
तुम्हारी मुस्कान से लज्जित
हुआ था आईना
ढेर सी तम्म्नाएं जगी थीं
मन में
तुमने पूरा किया उन्हें
प्यार,ममता,स्नेह ,अपनेपन को
तुम लाइ थीं
अपने आँखों में भरकर
आज २५ वर्ष बाद भी
मेरा तुम्हारा ये साथ
उतना ही नया हे ,
जितना प्रथम दिन था |
मोहिनी चोरडिया
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