मंगलवार, 26 जुलाई 2011

अस्तित्व की तलाश


मेरी मित्र ने एक दिन कहा

में" सेल्फ्मेड " हूँ

में असमंजस में पड़ी रही ,

सोचती रही ,

क्या ये सच है ?

भावो की धारा ने झकझोरा

एक नवजात शिशु की किलकारी ने

अनायास ही मेरा ध्यान बटोरा

इस शिशु को बनाने वाले बीज

कह रहे थे ,माते | हमें धारण करो

हमारा पोषण करो ,

हमें अपने रक्त से सींचो

तभी हम अपना अस्तित्व बनाये रख सकेंगे .

जैसे बीज बोने के बाद

धरती उसे धारण करती है

आकाश से पिता तुल्य सूर्य

अपनी ऊष्मा देते हैं ,उर्जा देते हैं

बदली अमृत तुल्य जल बरसाकर

अपना प्यार लुटाती है .

माली उसे सींचता है अपने दुलार से

धरती का कण -कण

या कहें पूरी कायनात

उस बीज की सुरक्षा में लग जाती है

उसका अस्तित्व बचाती है

और एक दिन बीज पेड़ बनता है ,

मधुर पेड़ ,जिसमें

सुंदर -सुंदर फूल खिलते हैं

प्रकृति की अभिव्यक्ति का सबसे सुन्दर रूप

उस दिन देखने को मिलता है .

शिशु को भी एक पुरुष ,

योग्यतम पुरुष बनाने में ,

कई अनजान शक्तियां

अपनी ताकत लगा देती हैं

तब जाकर प्रकृति की श्रेष्ठतम रचना सामने आती है

और यदि वह कहे की में "सेल्फमेड" हूँ तो

यह उसकी नादानी हे ,उसका अहंकार है

जो एक दिन उसे वापस

पहुंचा देगा वहीँ ,उसी निचले धरातल पर

जहाँ उसका अस्तित्व

फिर-फिर अभिव्यक्ति की तलाश में होगा |


मोहिनी चोरडिया


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